Story of Bata: थॉमस बाटा कंपनी के संस्थापक जिसकी शुरुआत उन्होंने मध्य यूरोप के चेकोस्लोवाकिया में 1894 में किया
हौसला अगर बुलंद तो मंजिल दूर नहीं
फर्श से अर्श की कहानी थॉमस बाटा के साथ सही साबित हुई उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जो परिवार जूता बनाने का काम करता था थॉमस बाटा जब इस काम में लगे तो उन्हें सफलता मिली इस सफलता को ऊंचाई तक ले जाने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता पड़ी.
कर्ज लेकर थॉमस बाटा बात ने शुरू किया व्यापार
थॉमस बाटा ने अपने फैक्ट्री को ऊंचाई पर ले जाने के लिए कर्ज लिया परंतु फैक्ट्री की माली हालत खराब होने के कारण बिजनेस ठप पड़ गया और कर्ज की आर्थिक बोझ ने उनकी स्थिति दिवालिया कर दी, कर्ज चुकाने के कारण उनकी स्थिति खराब होती चली गई.
यही नहीं जिस कंपनी को थॉमस बाटा ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते थे उसे दिवालिया घोषित करना पड़ा .
थॉमस बाटा ने इंग्लैंड के जूता कंपनी में की मजदूरी
मनुष्य अगर संघर्ष जारी रखें तो सफलता निश्चित मिलती है इसी बात को सख्त साबित करते हुए थॉमस बाटा ने अपनी कंपनी दिवालिया होने के बाद थॉमस बाटा इंग्लैंड आ गए और इंग्लैंड में किसी दूसरे कंपनी में उन्होंने मजदूरी का काम शुरू किया काम करने के दौरान वहां जूते के व्यापार को उन्होंने बारीकियां से समझा और वापस अपने देश लौट कर नए सिरे से कम की शुरुआत की.
1920 में थॉमस बाटा भारत आए थे और 1931 में बाटा शू कंपनी प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना हुई थी
सोने की चिड़िया कहे जाने वाली भारत में थॉमस बाटा 1920 के दशक में ब्रिटिश भारत यात्रा के दौरान भारत आए थे इस दौरान उन्होंने भारतीयों को नंगे पांव चलते हुए देखा तो उन्होंने भारत में कंपनी की स्थापना का निर्णय लिया
भारत में उन्होंने साल 1931 में बाटा शू कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के नाम से बाटा की नींव भारत में रखी साल 1932 में थॉमस की मौत के बाद बात के संचालक के रूप में उनके भाई जॉन एंटोनीम बाटा को संभाला.
जब भारत में बाटा ने सफलता की कहानी लिखनी शुरू की तो सन 1937 में कोलकाता के पास भटनागर में बाटा ने एक बड़ी इकाई की शुरुआत की और बाटा इंडिया का आज भारत में करीब 1500 ज्यादा रिटेल स्टोर है आज बाटा भारत की पहचान है लोगों का विश्वास है .
भारत में मध्यम वर्ग द्वारा बाटा लोगों की पहली पसंद है आज बाटा भारत में कई बार आर्थिक मंदी की चपेट को भी देख चुका है कंपनी की भारत में आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण कंपनी बंद होने के कगार पर भी चली गई पर अपनी कुशल नेतृत्व और अनुभवों के कारण बाटा ने हर बार आर्थिक मंदी को मार झेलते हुए कंपनी अपना मुकाम बनाए रखी और भारत में लोगों के विश्वास पर पूरी तरह सही साबित हुई.
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