श्रीलंका में आर्थिक बदहाली के विरोध में प्रदर्शन के दौरान मानवाधिकार हनन की चिन्ता
यूएन मानवाधिकार आयोग ने श्रीलंका सरकार से, देश के गहराते आर्थिक संकट पर बढ़ते प्रदर्शनों के जवाब में घोषित की गई आपात स्थिति के दौरान, तनावों को शान्तिपूर्ण तरीक़े से दूर करने का आग्रह किया है.

यूएन मानवाधिकार आयोग ने श्रीलंका सरकार से, देश के गहराते आर्थिक संकट पर बढ़ते प्रदर्शनों के जवाब में घोषित की गई आपात स्थिति के दौरान, तनावों को शान्तिपूर्ण तरीक़े से दूर करने का आग्रह किया है.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने कहा कि स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब हुई है, और खाद्य पदार्थों व ईंधन की क़िल्लत के साथ-साथ बिजली कटौती भी बढ़ी है. इन हालात के कारण हताश लोगों के नए प्रदर्शन बढ़ रहे हैं.
बता दें कि वहां हाल के महीनों में, आम लोगों में हताशा बढ़ी है जिसे व्यक्त करने के लिये देश भर में प्रदर्शन हुए हैं जो आमतौर पर शान्तिपूर्ण रहे हैं. अलबत्ता पिछले एक पखवाड़े के दौरान, ईंधन, खाना पकाने में प्रयोग की जाने वाली गैस, ज़रूरी खाद्य पदार्थें की अचानक क़िल्लत, बढ़ती महंगाई, मुद्रा अवमूल्यन और बढ़ती बिजली कटौती ने, हालात और भी ख़राब कर दिये हैं.
गौरतलब है कि 31 मार्च को राष्ट्रपति निवास के बाहर हुए एक प्रदर्शन के बाद, सरकार ने एक अप्रैल को आपातकाल की घोषणा कर दी थी जिसके दौरान दो अप्रैल को सांय छह बजे से 36 घण्टों के लिये करफ़्यू लगा दिया था. उसके अगले दिन से 15 घण्टों के लिये सोशल मीडिया नैटवर्क भी बन्द कर दिये. पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ ज़रूरत से ज़्यादा और अनुचित हिंसा का प्रयोग करने की भी ख़बरें हैं. यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने श्रीलंका सरकार को याद दिलाया है कि आपातकाल से सम्बन्धित उपाय, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून से मेल खाने चाहिये, सख़्ती से स्थिति की ज़रूरत के अनुसार ही सीमित होने चाहिये और आपात स्थिति का प्रयोग मत भिन्नता व शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को रोकने के लिये नहीं होना चाहिये.