दैवाधीनम जगत सर्वं, पूरी दुनिया देवताओं द्वारा शासित है, दैवाधीनम जगत सर्वं : श्रीश्री
अशोक सिंघल हमारे आश्रम के दौरे पर मुझसे मिले तो उनको यह सलाह दी कि वे धैर्य रखें और प्रार्थना करें

गुरुदेव श्रीश्री रवि शंकर जी
जीवन दृश्य और अदृश्य, सूक्ष्म और स्थूल के बीच एक परस्पर जटिल क्रिया है। प्रकृति के अपने नियम हैं और कुछ भी समय से पहले फलीभूत नहीं होता। नवरात्रि के इस समय में जब हम देवी शक्ति की उपस्थिति का आह्वान और उत्सव मना रहे हैं, मुझे अयोध्या राम मंदिर से संबंधित एक घटना याद आ रही है। 2001 में जब मैं विश्व एकनॉमिक फोरम में अपना वक्तव्य देकर वापस भारत लौटा, तो अटल बिहारी वाजपेयी ने मुझसे अयोध्या विवाद में शामिल होने और हितधारकों के साथ बातचीत शुरू करने का अनुरोध किया। उनके कहने पर मैं सईद नकवी, एआईएमपीएलबी सदस्य कमाल फारूकी, शबाना आज़मी और जावेद अख्तर सहित कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं और समुदाय के अन्य प्रभावशाली सदस्यों से मिला। अधिकांश नेता राजनीति के दायरे से बाहर शांतिपूर्ण ढंग से संघर्ष को सुलझाने के पक्ष में थे। यद्यपि हम सार्थक रूप से उपयोगी चर्चाओं में लगे हुए थे, मुझे लग रहा था कि इस मुद्दे के समाधान में अनुमान से अधिक समय लगेगा।
इस कारण से जब विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल जी हमारे आश्रम के दौरे पर मुझसे मिले तो उनको यह सलाह दी कि वे धैर्य रखें और प्रार्थना करें। कांची शंकराचार्य और नई दिल्ली में मुस्लिम नेताओं के बीच वार्ता विफल होने के तुरंत बाद वे मुझसे मिलने के लिए बैंगलोर आए थे। अशोक जी चाहते थे कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राम मंदिर के लिए निर्णायक रूप से रास्ता साफ करें। यह उनका एक सूत्री एजेंडा था। हालांकि अशोक जी उस समय प्रधानमंत्री के साथ बात नहीं कर रहे थे, विशेष रूप से इस बात से नाराज थे कि वाजपेयी जी ने उन्हें अयोध्या मुद्दे पर अपने आमरण अनशन के दौरान व्रत तोड़ने के लिए मजबूर किया था। इसलिए वे बंगलौर में थे, ताकि मुझे वाजपेयी जी को कानून लाने और राम जन्मभूमि विवाद को हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए मनाने के लिए राजी किया जा सके। उस समय वे 76 वर्ष के थे, उनके तेज दिमाग और उनकी आंखों में जुनून और दृढ़ संकल्प की एक चिंगारी थी।
उनकी कुछ मांगें अव्यावहारिक लग रही थीं, क्योंकि उस समय सरकार गठबंधन के समर्थन पर निर्भर थी और हर कोई इस मुद्दे पर एक ही पृष्ठ पर नहीं था। उन्होंने कहा मुझे परवाह नहीं है, भले ही यह सरकार के पतन की ओर ले जाए। मैंने यह कहते हुए उत्तर दिया, “इसके लिए प्रार्थना करिए। आपके दृढ़ संकल्प से सब संभव है। अशोक जी सहमत नहीं थे और चले गए। उस समय, मुझे अंतः प्रज्ञा से लगा कि इसे बनने में 14 साल से अधिक का समय लगेगा, लेकिन मैंने अपने विचार किसी के साथ साझा नहीं किए। अगली सुबह ध्यान के दौरान मुझे एक तालाब के पास एक पुराने देवी मंदिर के दिव्य दर्शन हुए जिसके जीर्णोधार करने की आवश्यकता थी। उस समय मैंने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया। कुछ दिनों बाद चेन्नई के एक नाडी ज्योतिषी आश्रम आए। यह बुजुर्ग सज्जन एक ऐसे परिवार से संबंध रखते थे जो कई पीढ़ियों से प्राचीन शास्त्रों और ताड़ के पत्तों की रक्षा करते थे, जिसमें पुराने ऋषियों द्वारा देखे मनुष्यों की भविष्यवाणियां लिखी रहती थीं।
नाडी शास्त्री ने कहा “गुरुदेव, राम जन्मभूमि विवाद को हमेशा के लिए हल करने के लिए आपको दोनों समुदायों को एक साथ लाने में भूमिका निभानी होगी।” फिर उन्होंने कहा कि श्रीराम की कुलदेवी देवकाली का अयोध्या में एक मंदिर है और यह मंदिर बेहद जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। जबतक देवी को प्रसन्न नहीं किया गया और मंदिर का पूरी तरह से जीर्णोधार नहीं करा जाता, अयोध्या विवाद समाप्त नहीं होगा और हिंसा जारी रहेगी।
चूंकि उपस्थित लोगों में से कोई भी इस प्रकार के देवकाली मंदिर के बारे में नहीं जानते थे, इसलिए कुछ स्थानीय लोगों से यह पता लगाने के लिए कहा गया कि क्या ऐसा कोई मंदिर अयोध्या में मौजूद है। जल्द ही यह पता चला कि इस क्षेत्र में वास्तव में दो काली मंदिर हैं। एक शहर के बीचों-बीच छोटी देवकाली मंदिर और दूसरा थोड़ी दूर देवकाली मंदिर। बाद वाला जर्जर अवस्था में था। इसमें एक केंद्रीय तालाब था जो डंपिंग ग्राउंड बन गया था। हमने देवी मंदिर का जीर्णोद्धार करने और तालाब का कायाकल्प करने का निर्णय लिया। उस समय अयोध्या गंदगी से भरा, संकरी गलियों वाला एक अति उपेक्षित शहर था। लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष और साधु-संतों की हत्याओं की कहानियों को लेकर उस स्थान में भय की भावना फैली हुई थी। किसी को भी इन साधुओं के पक्ष में बोलने की हिम्मत नहीं थी। उनके पास कोई निर्दिष्ट आश्रम नहीं था, कोई परिवार नहीं था और ना ही कोई सामाजिक प्रतिष्ठा थी।
देवी मंदिर के जीर्णोद्धार का काम कुछ ही महीनों में पूरा हो गया और हम एक बड़े समूह में अयोध्या में पुर्नस्थापन समारोह के लिए गए। हमारे बंगलौर आश्रम के कई पंडितों ने मंदिर की देवी का अभिषेक किया और 19 सितंबर, 2002 को एक चंडी होम किया गया। बीके मोदी और अशोक जी ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। प्राचीनकाल से भारत के हर हिस्से में देवताओं की पूजा की जाती रही है, क्योंकि अस्तित्व के स्थूल स्तर पर इन सूक्ष्म शक्तियों का गहन प्रभाव पड़ता है। बाद में उस शाम मंदिर के प्रांगण में ही एक भव्य संत समागम का आयोजन हुआ, जिसमें रामचंद्र दास परमहंस जी, दिगंबर अखाड़े के महंत और राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख शामिल थे। कुछ सूफी संतों को भी आमंत्रित किया गया था। मुस्लिम नेताओं ने मुझे रामचरितमानस की एक प्रति भेंट की और भगवान श्रीराम के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा को व्यक्त किया।
इस सदियों पुराने संघर्ष में काफी लोगों की जान जा चुकी थी और हमें एक ऐसे हल की जरूरत थी जो समय की कसौटी पर खरा उतरे। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने अदालत के बाहर एक समझौते का प्रस्ताव रखा जिसमें मुस्लिम समुदाय सद्भावना के रूप में हिंदुओं को राम जन्मभूमि उपहार में देंगे और हिंदू बदले में मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन उपहार में देंगे और उसे बनाने में मदद करेंगे। इससे दोनों समुदायों के बीच भाईचारे का स्पष्ट संदेश जाएगा। अगले दिन अशोक जी ने मुझे इलाहाबाद में अपने पुश्तैनी घर पर बुलाया, जहां उनके भाई, उनके परिवार और उनके दोस्त इकट्ठे हुए थे। वहां सामूहिक ध्यान कराने के बाद मैंने अशोक जी से कहा कि यह केवल मानव प्रयास नहीं है, बल्कि ईश्वरीय इच्छा भी है, जो किसी भी कर्म के फलीभूत होने में भूमिका निभाती है और इसके लिए व्यक्ति को धैर्य की आवश्यकता होती है। मैंने उनको इशारा किया कि वह जल्दबाजी में कुछ न करे। शाम के अंत तक अशोक जी शांत और आश्वस्त लग रहे थे और वे वाजपेयी सरकार के खिलाफ अपने रुख में भी नरम हो गए।
कुछ साल बीत गए। 2017 में दोनों समुदायों के नेताओं के अनुरोध पर मैंने राम जन्मभूमि मामले में मध्यस्थता करने के अपने प्रयासों को नवीनीकृत किया। तबसे एक के बाद दूसरी चीज़ें घटित होती चली गई और अंततः आज अयोध्या अपनी खोई हुई महिमा को पुनः प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की सरकार के प्रयासों के लिए धन्यवाद। वह निराशा में डूबा मंदिरों का शहर आज प्रगति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नयन का एक जीवंत और शानदार बदलाव प्राप्त कर रहा है।
ऐसा कहा जाता है कि दैवाधीनम जगत सर्वं, पूरी दुनिया देवताओं द्वारा शासित है। जीवन के वह सब तत्व जिन्हें हम अपने नियंत्रण में समझते हैं, वास्तव में देवताओं द्वारा नियंत्रित और निर्देशित होते हैं। नवरात्रि उस अमोघ और करुणामयी दैवी शक्ति का आह्वान करने का समय है।