सावरकर को लेकर जिस तरह के विवाद रहे हैं उनके चलते इस बात की कड़ी आलोचना की जा रही है कि केंद्र सरकार ने उनके जन्मदिवस को नई संसद का उद्घाटन करने के लिए चुना.
सावरकर की आलोचना उन माफ़ीनामों के लिए तो की ही जाती है जो उन्होंने अंडमान की सेल्यूलर जेल में बतौर क़ैदी, ब्रितानी सरकार को लिखे लेकिन साथ-साथ बहुत से इतिहासकार और लेखकों का मानना है कि महात्मा गाँधी की हत्या की साज़िश में सावरकर की भूमिका को लेकर लगा सवालिया निशान कभी भी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ.
नए संसद भवन के उद्घाटन की ख़बर आने के बाद महात्मा गाँधी के प्रपौत्र तुषार गाँधी ने ट्वीट कर कहा, “प्रधानमंत्री 28 मई को वीडी सावरकर की जयंती पर नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे. उन्हें भवन का नाम ‘सावरकर सदन’ और सेंट्रल हॉल का नाम ‘माफ़ी कक्ष’ रखना चाहिए.”

